मेरी खवाहिशे
खवाहिशो के मेरे ना पंख है,
ना ही सपनो का आसमा।
ना कोई उम्मीदों की दुनिया भी ,
ना चाहतों का कोई आसरा।
ढूंढती नहीं जो दुर की हो मंजिलें,
जानती नहीं उन उम्मीदों के सुर जो ना को मिलें।
ओस की बूंदों सी ख्वाहिशें मेरी ,
पहले किरण से पहल खामोशी से रोज़ आ कर मिल लेती है !
ना कोई उम्मीदों की दुनिया भी ,
ना चाहतों का कोई आसरा।
ढूंढती नहीं जो दुर की हो मंजिलें,
जानती नहीं उन उम्मीदों के सुर जो ना को मिलें।
ओस की बूंदों सी ख्वाहिशें मेरी ,
पहले किरण से पहल खामोशी से रोज़ आ कर मिल लेती है !
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